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अंधविरोध की बानगी

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यह सर्वविदित है कि उन सबका आदिमूल परमेश्वर है जो सब सत्य विद्या तथा पदार्थ विद्या से जाने जाते हैं। योग विद्या के प्रणेता ऋषि पतंजलि ने हजारों वर्ष पूर्व शांतिपूर्ण एवं ईश्वरोन्मुख जीवन जीने के लिए एक ऐसी विधा (सत्य विद्या) का ज्ञान दिया जिसके लिए मानव जाति सदैव आभारी रहेगी। विश्व शांति, बंधुत्व एवं एकता के लिए अनुपम इस मंत्र से संबन्धित भारत के प्रस्ताव को स्वीकार करते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ ने 177 देशों की सहमति से 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस की घोषणा की। इसमें 47 मुस्लिम देशों का भी समर्थन प्राप्त है। पूरे विश्व ने भारत के इस वैदिक ज्ञान की महत्ता को समग्रता में समझते हुए सहज रूप से स्वीकार किया। दूसरी तरफ हम हैं जो कि किसी कार्य या विषय का विरोध सत्यासत्य पर विचार किए बिना करते हैं जैसा कि इस मामले में कर रहे हैं। भारत की ज्ञानरूपी इस सांस्कृतिक धरोहर का विरोध कहीं और नहीं उस देश में हो रहा है जहां उसकी उत्पत्ति हुई। यह अपने में वेदनापूर्ण ही नहीं बल्कि लज्जा-जनक भी है। लोकतन्त्र में सभी को तर्कपूर्ण विरोध का अधिकार तो है लेकिन अन्ध-विरोध अर्थात विरोध के लिए विरोध का नहीं जोकि हो रहा है।

कांग्रेस सहित कई राजनैतिक दलों ने अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस का पार्टी लाइन पर अधिकृत रूप से विरोध किया है। इन दलों द्वारा अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं को योग दिवस कार्यक्रम में भाग लेने से मना करते हुए अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस का बहिष्कार किया गया। इन दलों, विशेषकर कांग्रेस, का आरोप है कि सरकार के पैसे से योग दिवस का आयोजन करवाकर नरेंद्र मोदी अपना महिमामंडन कर रहे हैं। कोई इसे ड्रामा बता रहा है, तो कोई देश पर हिन्दुत्व थोपने का आरोप लगा रहा है। किसी ने इसे चुनावी वादों से ध्यान हटाने की चाल बताई, तो कोई सब पर जबरन थोपा जाने वाला अधिनायकवादी कदम। ऐसी अभिव्यक्तियों पर जब सवाल किया जाता है तो जबाब मिलता है कि योग का कोई विरोध नहीं है, विरोध है तो केवल मोदी द्वारा योग को लेकर किए जाने वाले क्रिया-कलाप से है। यह किसी के समझ से परे है कि मोदी सरकार ने ऐसा क्या किया कि जिससे कार्यक्रम के सूत्रधार देश में ही योग दिवस को लेकर विवाद छिड़ा हुआ है। जब अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के कार्यक्रम में किसी के लिए भाग लेना अनिवार्य नहीं किया गया तो विवाद किस बात का? फिर भी कार्यक्रम थोपने जैसा आरोप लगाने का औचित्य क्या? इन प्रश्नो का विरोधियों के पास कोई उत्तर नहीं है। फिर भी विरोध के नाम पर कार्यक्रम पश्चात प्रतिक्रियात्मक विरोध जारी है।

एक ओर ओबैसी बंधुओं ने योग को गैर-इस्लामिक घोषित करते हुए विरोध का स्वर बुलंद किया तो दूसरी ओर आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड ने सुर में सुर मिलाते हुए अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के विरोध में पूरे देश में जबर्दस्त प्रदर्शन करने का ऐलान किया। कई इस्लामी जमातों के रहनुमाओं ने ‘सूर्य नमस्कार’ को अल्लाह की सज़दा में गुस्ताखी बताया। आश्चर्य कि बात तो यह है कि दुनिया के 47 मुस्लिम देशों को योग में ऐसा कुछ नहीं दिखा जो कि इस्लाम विरोधी हो अन्यथा वे यूएन प्रस्ताव को समर्थन नहीं देते। योग दिवस विरोधी ओबैसी बंधुओं, धर्मगुरुओं और मुल्लाओं को ऐसा लगा मानों प्रस्ताव समर्थक मुस्लिम देशों को इस्लाम का कोई इल्म नहीं है, इसलिए उनका दायित्व था कि वे योग दिवस का विरोध करें। सत्य विद्या से अर्जित ज्ञान ही हमें ईश्वर की ओर उन्मुख करता है। यदि ऐसे ज्ञान-चक्षु से देखें तो सूर्य नमस्कार कहीं से भी इस्लाम विरोधी नहीं है। सूर्य नमस्कार एक योगासन है जो हमें ऊर्जा के साथ ही साथ विटामिन-डी प्राप्त करने का एक अवसर देता है। सूर्य के प्रकाश एवं गर्मी से ही प्रकृति एवं जीवन संभव है। फिर कैसा विरोध? यदि सूर्य नमस्कार से विरोध है तो उससे प्रकाश, और उसी तरह पृथ्वी से अन्न, नदियों से जल, वायु से शीतलता एवं प्राणवायु, अग्नि से ऊर्जा और वृक्ष से फल आदि क्यों लेते हैं? हिंदुओं के ये सभी देवता हैं क्योंकि प्राणी जगत के लिए सभी कुछ न कुछ देते है। सूर्य नमस्कार से यदि स्तुति का ही भाव निकाला जाये तो वह ईश्वर की इस अनुपम कृति के लिए कृतज्ञता का प्रकटीकरण है। यदि इस्लाम में सूर्य नमस्कार निषेध है तो कब्र पूजा क्या है? यदि अल्लाह के अतिरिक्त किसी और की इबादत मंजूर नहीं तो पैगंबर का गुणगान क्यों? ऐसे बहुत सारे प्रश्न हैं जिनका उत्तर देना आसान नहीं। इसके अतिरिक्त कोई मौलबी यह बत्ताने में समर्थ नहीं है कि जब इस्लाम, ईसाईयत एवं अन्य सभी पंथों से हजारों साल पहले योग विद्या वेद-ज्ञान के रूप में मिला तो इसे सांप्रदायिक क्यों बताने का प्रयास किया जा रहा है। यदि योग क्रिया सांप्रदायिक होती या किसी धर्म में हस्तक्षेप करती तो इस्लाम एवं ईसाई बाहुल्य समर्थन नहीं मिलता। अतएव मुस्लिम समुदाय के एक धड़े द्वारा विरोध केवल निहित ध्येय के साथ किया गया जो कि मोदी विरोध की ओर संकेत करता है।

अंततः 21 जून ,2015 को देश के सभी भागों में प्रथम अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस का भव्य आयोजन पूरे उत्साह के साथ किया गया। विशेषरूप से राजपथ पर आयोजित हुए कार्यक्रम में दो विश्व रेकॉर्ड बने। प्रधानमंत्री नरेंद्र ने स्वयं योग कर लोगों का उत्साह वर्धन किया। विश्व के कुल 193 देशों में अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस अनेकानेक भव्य कार्यक्रम आयोजित किए गए। ऐसा शायद ही कभी किसी अंतर्राष्ट्रीय दिवस का आयोजन हुआ हो जिसने पूरे विश्व को एकता के सूत्र में बांध दिया हो। इस कार्यक्रम के प्रणेता नरेंद्र मोदी की सर्वत्र प्रशंसा हो रही है। इनकी छबि एक प्रखर विश्व नेता के रूप में उभरी है। कांग्रेस ने पूर्ण बहिष्कार को अंजाम दिया। कार्यक्रम आयोजन उपरांत जो प्रतिक्रियाएँ कांग्रेस, जेडी(यू), राजद, बीएसपी एवं एनसीपी की ओर से आयीं, निश्चितरूप से इन दलों के नेताओं की बौखलाहट को प्रगट करने वाली थी। कार्यक्रम को नाटक, ध्यान हटाना, भगवाकरण, सांप्रदायिकता फैलाना आदि बताने वाले इन नेताओं की बुद्धि, ज्ञान और योग्यता पर तरस आता है जोकि भारतीय धरोहर के गौरव योग विद्या का मानमर्दन करने का अभियान चलाये हुये हैं। अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पर हुये सरकारी व्यय को अपव्यय बताने वाले नेता, तथाकथित बुद्धिजीवी एवं सेक्युलरिस्ट अंतर्राष्ट्रीय साक्षारता दिवस, महिला दिवस, एड्स दिवस आदि कार्यक्रमों पर होने वाले करोड़ों रुपयों के सरकारी व्यय को क्या कहेंगे, ये तो वही जाने, लेकिन उनकी भारतीयता और उसकी गौरवशाली संस्कृति से कितना विरोध है, योग दिवस आयोजन से जग-जाहिर हो गया।

योग दिवस विरोध के पीछे तीन कारण दिखाई देते हैं। पहला मुस्लिम वोटबैंक, दूसरा मोदी की बढ़ती अंतर्राष्ट्रीय छबि और तीसरा स्वयं की पंथिक प्रतिबद्धता। प्रधानमंत्री मोदी के प्रयास से योग को अंतर्राष्ट्रीय दिवस के रूप में मान्यता मिली। इसके माध्यम से देश और दुनिया में शांति और सद्भाव का संदेश पहुंचा। क्षद्म-पंथनिरपेक्षता के नाम पर अल्पसंख्यक वोटबैंक बनाने वालों को देश को एक सूत्र मे पिरोना देखकर झटका लगा है क्योंकि मुसलमानों ने भी बढ़-चढ़ कर योग कार्यक्रम भाग लिया। इसलिए इस परिवर्तन के लिए भी मोदी की इस पहल को जिम्मेदार माना। सोनिया गांधी ईसाई होने के नाते और मायावती बौद्ध पंथ की अनुयायी होने के कारण भी योग दिवस की कटु आलोचक है। लेकिन सबसे अधिक मोदी का विश्व स्तर पर बढ़ता स्टेटस तथा देश में बढ़ती स्वीकार्यता इन नेताओं को रास नहीं आ रही है। सीता राम यचुरी के एकदम ताजे बयान ‘कुत्तों कि तरह योग” से इन विरोधियों की योग और मोदी विरोध का स्पष्ट संकेत मिलता है। कुछ टीवी चैनल इतने महत्वपूर्ण भारत के गौरव योग दिवस पर आयोजित कार्यक्रम का नाम-मात्र के लिए प्रसारण कर दिन भर ललित मोदी प्रकरण को लेकर नरेंद्र मोदी को घेरते रहे। इसलिए देखा जाये तो समेकित रूप में कांग्रेस सहित सभी दल मुस्लिम समुदाय का हितैषी दिखने की होड़ में योग के बहाने मोदी विरोध कर रहे हैं। अब तो देश और समाज का ईश्वर ही मालिक है।

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