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मोदी सरकार के 25 मई, 2015 को एक वर्ष पूरे होने जा रहे हैं। विभिन्न मंचों से सरकार के एक वर्ष के कार्यों का लेखा-जोखा प्रस्तुत किया जाना प्रारम्भ हो चुका है। विशेष तौर पर प्रिंट एवं इलेक्ट्रोनिक मीडिया अपने-अपने स्रोतों से प्राप्त आंकड़ों के आधार पर समीक्षात्मक आख्या प्रस्तुत कर रहे हैं। विपक्षी दल अपनी जेब में रिपोर्ट कार्ड लिए खूम रहे हैं। जिस उत्सुकता से वर्तमान सरकार के एक वर्ष के कार्य सम्पादन का विश्लेषण किया जा रहा है, शायद ही पहले कभी देखने को मिला हो। कारण स्पष्ट है कि लोगों को मोदी सरकार से अपेक्षाएँ ज़्यादा हैं। हों भी क्यों नहीं क्योंकि नरेंद्र मोदी ने चुनाव प्रचार के समय देश की जनता की आशा-आकांक्षाओं को इतना बढ़ा दिया है कि लोग उसी के अनुरूप कार्य प्रदर्शन की उम्मीद लगाए बैठे हैं। देश कांग्रेसनीत सरकार के पिछले दस वर्षों की अकर्मण्यता एवं भ्रष्टाचार से मुक्ति पाना चाह रहा था, परिणामतः मोदी को बहुमत की सरकार मिली। लोगों को मोदी में देश को विकास के मार्ग पर आगे ले जाने की आशा की एक किरण दिखी। ऐसी आशा की जानी अपेक्षित भी है क्योंकि देश में तीस वर्षों के पश्चात एक पार्टी की पूर्ण बहुमत की सरकार बनी है। लोगों की आकांक्षाओं की पूर्ति होनी चाहिए और सरकार भी इसी उद्देश्य को लेकर आगे बढ़ रही है, लेकिन क्या इसके लिए मात्र एक वर्ष का समय प्रयाप्त है? इस प्रश्न का ईमानदार उत्तर होगा ‘नहीं’, फिर भी विपक्ष सरकार की नियत पर संदेह व्यक्ति करते हुए हमला बोल रहा है। कांग्रेस मोदी सरकार को गरीब, किसान, मजदूर विरोधी एवं कॉर्पोरेट समर्थक सिद्ध करने के लिए एड़ी-चोटी का प्रयास कर रही है। अन्य विपक्षी दल भी इस दुष्प्रचार में कांग्रेस पार्टी से आगे निकाल जाने कि होड़ में लगे हुए हैं।
सच्चे प्रयास से तो कोई भी लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है लेकिन समयवद्धता के एक ही नाप में बांधकर नहीं। कुछ लक्ष्य दीर्घकालिक होते हैं तो कुछ लघुकालिक। बीजेपी ने जो वादे किए उनमे से कइयों को अल्पावधि में पूरा करने का आश्वासान दिया जोकि संभव नहीं था क्योंकि व्यवहारिक रूप से वे दीर्घावधि में पूरे किए जा सकने वाले वायदे थे। हालांकि कुछ वादे तो तात्कालिक पूरे किए जा सकने वाले दिख जरूर रहे थे लेकिन बिना ठोस एवं समयवद्ध तैयारी के वे भी जमीन पर नहीं उतारे जा सकते थे। ऐसा भी तो नहीं है कि मोदी सरकार ने कुछ किया ही नहीं। वास्तविकता तो यह है कि वर्तमान केंद्र सरकार पिछले सड़सठ वर्षों की अवधि में देश में पैदा हुई रिक्तता को भरने के साथ ही साथ विकास की ओर तेजी से कदम बढ़ा रही है। जिस तरह किसी भवन के निर्माण के लिए मजबूत एवं ठोस नींव की आवश्यकता होती है, ठीक उसी तरह देश के विकास के लिए ठोस आधार की। मोदी सरकार विकासरूपी भवन के इसी फ़ाउंडेशन के निर्माण में लगी हुई है। वे सरकारें जो केवल वोटबैंक को ध्यान में रखकर मुफ्तखोरी और लोक-लुभावन को बढ़ावा देने वाले कार्यक्रमों को अबतक देती आयी हैं, उन्हे तो लगेगा कि मोदी सरकार ने कुछ नहीं किया। उन सरकारों ने देश की जनता के साथ बड़ा अन्याय किया है क्योंकि उन्हे मुफ्तखोरी का आदी बनाया, आलसी बनाया। मोदी सरकार इसके विपरीत चलते हुए विकास के निमित्त कठोर फैसले ले रही है। इसके अच्छे परिणाम अवश्य आयेंगे, इसका सबको विश्वास है।
कांग्रेस मोदी सरकार के एक वर्ष के परफॉर्मेंस को शून्य अंक दे रही है। क्या कांग्रेस द्वारा मोदी सरकार के इस मूल्यांकन को जनता सहजता से स्वीकार कर लेगी जिसने कोयला, 2जी, कॉमनवेल्थ गेम्स, आदर्श और रक्षासौदे जैसे अनेक महाघोटालों को देखा हो? जिसने विश्व में भारत की भ्रष्टाचारी देश के रूप में छबि बनाई हो? स्पष्टतः नहीं। दूसरी तरफ मोदी ने अबतक भाई-भतीजाबाद एवं भ्रष्टाचार मुक्त एक वर्ष की सरकार चलायी। विदेश में भारत के प्रति विश्वनीयता का भाव पैदा किया। प्रधानमंत्री के विदेशी दौरों से पूरी दुनियाँ में भारत की गूंज सुनाई पड़ रही है। विदेशी निवेशकों में विश्वास का सृजन हुआ है। इसके विपरीत कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी मोदी के विदेशी दौरों का मज़ाक उड़ा रहे हैं। लोकसभा सत्र के दौरान मोदी को एनआरआई प्रधानमंत्री बताते हैं और चुटकी लेते हुए कहते हैं इस समय देश के दौरे पर हैं इसलिए उन्हे किसानों की दशा का जायज़ा लेना चाहिए। जो व्यक्ति दो महीने तक खुद देश से बाहर अज्ञातवास पर रहा हो वह प्रधानमंत्री के सर्वविदित विदेशी यात्राओं, जोकि उनका राष्ट्रीय कर्तव्य है, का मज़ाक उड़ाए तो यह उसकी अपरिपक्व सोच नहीं तो क्या है। यह कितना विचित्र है कि जब मनमोहन सिंह यूपीए-2 के प्रथम वर्ष में 47 दिन विदेश में प्रवास पर रहें तो कोई हर्ज़ नहीं लेकिन नरेंद्र मोदी अपने कार्यकाल के प्रथम वर्ष मे 53 दिन विदेश यात्रा में बिताएँ तो अनर्थ। क्या राहुल बता सकते किस मापदंड पर मनमोहन सिंह की 47 दिनों का विदेशी प्रवास उचित है और मोदी का 53 दिनों का अनुचित? क्या यह भी बता सकते हैं कैसे मनमोहन सिंह एक वर्ष में मोदी से 6 दिन कम यात्रा करके स्वदेशी प्रधानमंत्री बने रहे जबकि मोदी एनआरआई प्रधानमंत्री बन गए? यह और कुछ नहीं बल्कि राहुल एवं उनकी पार्टी की हताशा, अल्पज्ञता, अधकचरी सोच और दूषित मानसिकता का द्योतक है। हाँ, इतना जरूर है कि मनमोहन सिंह अपने साथ विदेश यात्रा के प्रचार-प्रसार हेतु पत्रकारों का एक समूह लेकर जाते थे फिर भी उनकी यात्रा के बारे में हवाई जहाज़ पर चढ़ते-उतरते पत्रकार वार्ता के अतिरिक्त कुछ अधिक देखने-सुनने को नहीं मिलता था। दूसरी तरफ मोदी केवल दूरदर्शन के कुछ कर्मियों को साथ ले जाते हैं फिर भी पूरी दुनिया की मीडिया कवरेज करती है। देश के लगभग सभी टीवी चैनल यात्रा के प्रारम्भ से अंत तक लगातार प्रसारण करते है। अनेक मीडिया घरानों के प्रतिनिधि स्वयं की व्यवस्था से जहां-जहां मोदी जाते हैं, पहले से ही पहुंचे रहते है। मोदी की विदेश यात्रा में आखिर कुछ तो ठोस और प्रभावशाली है जो पूर्व के प्रधानमंत्रियों में नहीं था। मोदी प्रवासी भारतीयों को संबोधित करते हैं, पूर्वजों की जड़ों की ओर उनका ध्यान खींचते हैं, भारतीय संस्कृति की याद दिलाते हैं, अपनी मातृभाषा में वार्ता करते हैं, श्लोकों को संदर्भित करते हुए अपने विचार को रखते हैं, मंदिरों में जाते हैं आदि। कांग्रेस एवं अन्य विपक्षी दल इसे विदेश में किया गया सांप्रदायिक कृत्य मानते हैं क्योंकि उनके लिए भारत, भारतीयता तथा सनातन भारतीय संस्कृति एवं दर्शन की बात करना ही सांप्रदायिकता है। राहुल गांधी कहते हैं मोदी विदेश में प्रवचन दे रहे हैं क्योंकि उनकी जैसी सोच और समझ है उसके अनुसार उन्हे प्रवचन ही लगेगा। उन्हे लगता है मोदी कुछ उद्योगपतियों को विदेश यात्रा से लाभ पहुंचा रहे हैं लेकिन क्या राजीव गांधी और मनमोहन सिंह अपने साथ उद्योपातियों का प्रतिनिधिमंडल उन्हे लाभ पहुचाने के लिए ले जाते थे, इसका उत्तर उनके पास नही है। ध्यान रहे मोदी कभी किसी उद्योगपति को अपने साथ नहीं ले गए। इन सब के अतिरिक्त मनमोहन सिंह संसद चलने के दौरान भी विदेश यात्रा पर जाते थे जबकि नरेंद्र मोदी एक बार भी नहीं। अतएव कांग्रेस एवं अन्य विपक्षी दलों का मोदी की विदेश यात्रा की आलोचना करना और परफॉर्मेंस को शून्य बताना समझ से परे है।
मोदी ने साफ-सफाई पर बल देते हुए स्वच्छता जैसा महत्वपूर्ण स्व-प्रेरित अभियान चलाने का आह्वान किया। सभी दलों, विशेषकर कांग्रेस और सपा ने इसका जमकर मज़ाक उड़ाया। राहुल ने कहा कि मोदी सबके हाथ में झाड़ू पकड़ा रहे हैं; अखिलेश यादव ने कहा कि ये चालू लोग हैं अपने सत्ता भोग कर रहे हैं, औरों से झाड़ू लगवा रहे है; रामगोपाल यादव ने कहा कि मोदी स्वीपरों की रोजी-रोटी छीनने का प्रयास कर रहे है। स्वेच्छा एवं स्वयंसेवी भाव से स्वच्छता के लिए की जाने वाली श्रमसेवा को ‘झाड़ू पकड़ना’, ‘झाड़ू लगवाना’ तथा ‘स्वीपरों की नौकरी छीनना’ आदि कहकर ये नेता अपनी मानसिक सोच के स्तर का प्रदर्शन करते हुए जनता को गुमराह कर रहे हैं। इस अभियान के पीछे मोदी की मंशा सफाई करने से ज्यादा गंदगी न करने से है। लेकिन दुर्भाग्य है इस देश का कि विरोध के नाम पर एक अच्छे कार्य का भी अंध विरोध हो रहा है। दूसरी तरफ प्रधानमंत्री जन-धन योजना, बीमा योजना, सुरक्षा योजना, पेंशन योजना, सुकन्या योजना, बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ जैसी अनेक सामाजिक योजनाएँ सरकार द्वारा सामान्यजन एवं सर्वहारा वर्ग के लिए शुरू की गई हैं फिर भी राहुल गांधी कॉर्पोरेट की सरकार कहकर अपने को गरीबों का चैम्पियन बनाने कि कोशिश कर रहे हैं। जिसके परनाना के कपड़े लंदन और पेरिस में धुले जाते रहे हों वे मोदी की सरकार को सूट-बूट की सरकार कहकर मज़ाक उड़ा रहे हैं। जिनके साठ वर्षों के शासन के पश्चात आज भी गरीब गरीब ही बना हुआ हैं, वे इस स्थिति के लिए मोदी सरकार के एक वर्ष के शासन को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। जिन्होंने देश के किसानों की लाखों हेक्टेयर जमीन अधिगृहित करके अपने चहेतों को बाँट दी हो, मोदी सरकार को किसान विरोधी बता रहे है। जिन्होने उद्योग घरानों को एक चिट पर कोयला खदान आबंटित कर दी हो, वे मोदी सरकार को उद्योग समर्थक बता रहे हैं। जो अपने 5 वर्ष के शासन काल में फूड पार्क लगवा सकने में असमर्थ रहा हो, वह इसके लिए मोदी सरकार को दोषी बताकर बदला लेने का झूठा आरोप लगा रहा है। जिन्होने पिछले तीन वर्षों से सुप्रीम कोर्ट के काले धन पर एसआईटी बनाए जाने वाले आदेश पर कोई कार्यवाही न करके इसके गठन के आदेश को ही चैलेंज किया हो, वे मोदी सरकार के एसआईटी गठन पर टिप्पणियाँ कर रहे हैं। जिनके नेताओं ने यूएनओ जाकर कश्मीर को विवादित क्षेत्र बनवाया और तिब्बत थाली में परोस कर चीन को दे दिया, वे इन स्थितियों के लिए अब पाकिस्तान तथा चीन के साथ मोदी सरकार के सम्बन्धों को दोषी ठहरा रहे हैं। जिस पार्टी ने सुबास चन्द्र बोस जैसे क्रातिकारी स्वतन्त्रता सेनानी को अंग्रेजों का युद्ध अपराधी माना और संबन्धित अभिलेख छिपाया, वे आज मोदी पर फाइलें लीक करने का आरोप लगा रहे हैं। ऐसे अनेकों दृष्टांत हैं जो कांग्रेस के साठ वर्षों के शासन के प्रतिफल के रूप में हमारे सामने हैं। इन यथास्थितियों से आगे बढ़ने के लिए एक वर्ष का समय पर्याप्त नहीं होता है।
किसी सरकार के कार्य सम्पादन का मूल्यांकन उसे विरासत में मिली चीजों को सामने रखकर ही किया जा सकता है। मोदी को देश भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, अविश्वयनीयता, निर्णयहीनता, अकर्मण्यता जैसी स्थिति में मिला था। सुखद यह है कि एक वर्ष में इन नकारात्मकता के प्रभावों से देश को उबारकर सरकार आगे बढ़ चुकी है। वर्तमान सरकार की नीति और नियत दोनों स्पष्ट है। उम्मीद है कि यह सरकार विकास के मूल्य पर वोटबैंक को ध्यान में रखकर चुनाव से ठीक पूर्व किसानों के ऋणमाफी के लिए सत्तर हज़ार रुपए जैसे लोकलुभावन कार्यक्रम की घोषणा नहीं करेगी बल्कि असमय वर्षा से फसल की हुई क्षतिपूर्ति के लिए नुकसान की सीमा 50 से घटाकर 33 प्रतिशत तथा मुआवज़ा राशि डेढ़ गुना बढ़ाकर मदद जरूर करेगी। मोदी सरकार जो फैसले ले रही है वे निश्चित रूप से देश को आगे ले जाने हैं। एक वर्ष में जो किया है वे बताने के लिए पर्याप्त है कि अच्छे दिन आने वाले है।
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