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आत्महत्या का महिमामंडन क्यों?

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देश की राजनीति किस दिशा में जा रही है, सामान्य व्यक्ति की समझ से परे है। आत्महत्या जैसे विषय पर भी हल्की राजनीति हो रही है। विगत दिनों हरियाणा के कृषि मंत्री ओ॰ पी॰ धनखड़ ने पत्रकारों द्वारा किसान-आत्महत्या पर पूछे गए सवाल के उत्तर में कहा कि आत्महत्या किया जाना कायरता है और अपराध भी। सरकार ऐसे किसी अपराधी के साथ नहीं खड़ी होगी। मीडिया ने इस बयान को विवादास्पद बताते हुए पूरे दिन ब्रेकिंग न्यूज़ के रूप में प्राथमिकता के साथ चलाया। विपक्षी दलों ने इसे किसानों का अपमान बताया। राहुल गांधी ने संसद में इस मुद्दे पर बीजेपी को घेरने के अभिप्राय से अपनी तरकश से कई बाण चलाया और धनखड़ के बयान का पुरजोर विरोध करते हुए चुटकी लिया। राजनीति में विरोध का अपना महत्व है लेकिन दुराग्रह से ग्रसित होकर अंधविरोध करना तनिक भी नहीं। यह न केवल अनुचित है बल्कि अनैतिक भी। ऐसे अंधविरोध का परिणाम भयावह होता है। हरियाणा के कृषि मंत्री के बयान का अंधविरोध इसकी पुष्टि करता है और, यदि इसे स्वीकार कर लिया जाये तो आत्महत्या कायरता नहीं बल्कि वीरता है; अपराध नही सद्कर्म है। कम से कम किसी नेता ने साहस करके बिना वोटबैंक की चिंता किए सही बात करने हिम्मत की और किसानों को परोक्षरूप में आत्महत्या न करने की नसीहत भी दी लेकिन कितना दुखद है कि विपक्षी दल तथा मीडिया ने इसे विवादित बयान बताकर बीजेपी को घेरने का पुरजोर प्रयत्न किया। क्या यह स्पष्टरूप से आत्महत्या को बढ़ावा देने का प्रयास नहीं है? यदि हाँ, तो इन संस्थाओं को समाज को जबाब देना ही पड़ेगा कि उनके ऐसे अभियान के पीछे मन्तव्य क्या है।

यह सर्वविदित है कि देश के कानून के अनुसार आत्महत्या करना दंडनीय अपराध है। इस अपराध के लिए सजा भी निर्धारित है। नीतिशास्त्र के अनुसार इसे कायरतापूर्ण कृत माना गया है। वैदिक दर्शन के अनुसार यह पाप है। अन्य पंथों का भी यही मत है। भारतीय कानून के अनुसार जो व्यक्ति आत्महत्या करने का प्रयास करते पाया जाता है तो उसे न्याय व्यवस्था के अनुसार सजा मिलती है और उसे अपराधी के रूप में जेल की सलाखों के पीछे डाल दिया जाता है। फिर धनखड़ का वक्तव्य विवादित कैसे हो गया। क्या सत्य बोलना अपराध है? क्या धनखड़ ने ऐसा कहकर देश के कानून की अवहेलना की? यदि नहीं, तो इस मुद्दे को लेकर विपक्षी दल और मीडिया क्यों आसमान को सिर पर लिए हुए हैं। वस्तुतः इसके पीछे जो स्पष्ट मन्तव्य दिखता है उसके अनुसार विरोधी दलों को आत्महत्या के मुद्दे पर मोदी और उनकी पार्टी को किसानों के प्रति असंवेदनशील बताने का एक मुफ़ीद हथियार मिल गया और टीवी चैनलों को टीआरपी बढ़ाने का एक अच्छा मौका। इतना तूल देकर आत्महत्या जैसे अपराध को प्रोत्साहित करना स्वयं में आत्महत्या तुल्य है। आपदा के कारण कृषि की हुई हानि के परिणामस्वरूप किसानों द्वारा की जा रही आत्महत्या को यदि जस्टीफ़ाई किया जा सकता है तो सतीप्रथा को क्यों नही, व्यापार में हानि के कारण व्यापारियों की क्यों नहीं, परीक्षा में अनुतीर्ण छात्रों की क्यों नहीं, असफल प्रेमी-प्रेमिकाओं की क्यों नहीं, शेयर होल्डर्स की क्यों नहीं, चुनाव में हारने की हानि पर राजनैतिक दलों के नेताओं की क्यों नहीं आदि। हानि हानि ही होती है, कारण कोई भी हो। आत्महत्या के लिए हानि का वर्गीकरण नहीं किया जा सकता। उदाहरण के तौर कांग्रेस को लें। कभी लोकसभा की तीन चौथाई सीट जीतने वाली पार्टी विगत चुनाव में केवल चौवालिस सीट जीत सकी। इतनी करारी हार, जोकि पार्टी की अबतक की सबसे बड़ी हानि थी, पर कांग्रेस के शीर्ष नेताओं को तो आत्महत्या कर लेनी चाहिए थी। अबतक आत्महत्या क्यों नहीं की? किसानों कि तरह राजनीति की खेती में तुम्हारी भी तो बहुत बड़ी क्षति हुई। थोड़ी तो शर्म करो, चंद वोटों के लिए किसानों की आत्महत्या को जस्टीफ़ाई करने का पाप क्यों कर रहे हो। धनखड़ ने तो बिलकुल सत्य कहा। राहुलजी, मोदी को घेरने के लिए धनखड़ के वक्तव्य का विरोध कर आत्महत्या को क्यों महिमामंडित कर रहे हो? साथ ही देश के कानून कि धज्जियां क्यों उड़ा रहे हो?

आत्महत्या का सीधा अर्थ है स्वयं की हत्या। हत्या हत्या होती है चाहे कोई व्यक्ति स्वयं करे या कोई अन्य। आत्महत्या करने वाला व्यक्ति निश्चितरूप से कमजोर होता है क्योकि उसमे विषम परिस्थितियों से लड़ने की ताकत नहीं होती है। ऐसी स्थिति में देश व समाज का यह दायित्व होता है कि उसके मनोबल को ऊंचा बनाए रखने के लिए सबकुछ करे। जो किसान आत्महत्या कर रहे हैं वे निःसन्देह परिवार के प्रति अपनी जिम्मेदारियों के निर्वहन से भाग रहे हैं। उनका यह कार्य कायरतापूर्ण है, देश के कानून के अनुसार अपराधपूर्ण भी। इसे किसी भी प्रकार से महिमामंडित न किए जाने कि आवश्यकता है लेकिन क्या वोट पिपासु राजनीतिक समुदाय इससे बाज आएगा? उत्तर हमे सबको ही देना है।

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