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खट्टर को भी खटक गए खेमका

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आईएएस अधिकारी अशोक खेमका के सेवाकाल के कुल तेईस वर्षों में हुड्डा सरकार के समय तक कुल पैतालीस बार स्थानांतरण किया गया। मनोहर लाल खट्टर के नेतृत्व में भाजपा सरकार के आने के बाद उम्मीद जगी थी कि इस अधिकारी को ईमानदारी का पुरस्कार मिलेगा। हुआ भी ऐसा। वर्तमान सरकार द्वारा जब इन्हें परिवहन आयुक्त बनाया गया तो लगा कि इनके भी अच्छे दिन आ गए। लेकिन चार माह भी नही बीते की इन्हें पुनः स्थान्तरित कर कम महत्व वाले डीजी पुरातत्व के पद पर नियुक्ति दे दी गई। सरकार द्वारा इसे एक रूटीन ट्रांसफर बताया जा रहा है। अशोक खेमका ने अपने ट्वीट में लिखा है कि उन्होंने विभाग में व्याप्त भ्रष्ट व्यवस्था पर अंकुश लगाने का पूरा प्रयास किया। लगता है इस अधिकारी की ईमानदारी एवं निष्ठापूर्ण दायित्व निर्वहन की प्रवृत्ति सत्तासीन सरकार एवं उनके चापलूस अधिकारियों को रास नही आया। परिणामस्वरूप खेमका का हुआ 46वाँ स्थानान्तरण। वर्तमान सरकार की खेमका के ट्रान्सफर के पीछे की मंशा जो भी रही हो लेकिन एक नए विवाद को जन्म दे ही दिया जिसका जबाब देना उसके लिए आसान नहीं होगा। खेमका को लेकर हुड्डा सरकार के प्रति जनता के मन में एक धारणा बन गयी थी कि उसे ऐसे ईमानदार अधिकारी पसंद नहीं जो नेहरू-गाँधी परिवार के दामाद रोबर्ट वाड्रा के भूमि प्रकरण में हस्तक्षेप करने का साहस करे।

कांग्रेस की हुड्डा सरकार ने अपने कार्यकाल में हरियाणा में जमीन की अप्रत्याशित लूट-खसोट की। अपने चहेतों को कौड़ियों के दाम जमीन लूटा दी। यहाँ तक कि कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी के दामाद रोबर्ट वाड्रा के लिए भू-प्रयोग को नियमों के विरुद्ध बदल कर करोड़ों रुपये का लाभ पहुँचाया। सरकार ने भ्रष्ट आचरण करते हुए दामादश्री को अल्प समय में जमींन का हेर-फेर करते हुए माला-माल कर दिया। खेमका का दोष मात्र इतना ही है कि अपने ईमानदार प्रवृत्ति के कारण भूमि की इस हेरा-फेरी में सहयोग करने से इनकार किया। चकबंदी निदेशक रहते हुए रोबर्ट वाड्रा के पक्ष में भूमि के नियम विरुद्ध हुए नामान्तरण आदेश को निरस्त किया। ऐसा साहस शायद ही किसी अधिकारी ने कभी दिखाया हो। खेमका ने बिना किसी परिणाम की चिन्ता किये हुए हुड्डा सरकार की भ्रष्ट व्यवस्था के खिलाफ खड़े रहे। हुड्डा के पहले की सरकारों को भी खेमका की ईमानदारीपूर्ण एवं नियमानुसार कार्यशैली पसंद नहीं आयी। परिणामतः उन्हें कई बार ट्रान्सफर से गुजरना पड़ा। यद्यपि की ऐसे अधिकारी को पुरस्कृत किये जाने की जगह भ्रष्ट नेताओं द्वारा उन्हें प्रताड़ित किया जाता रहा। रोबर्ट वाड्रा का म्युटेशन रद्द होने के पश्चात अशोक खेमका को कई बार स्थानान्तरित करके प्रताड़ित किया गया। इतना ही नही हुड्डा ने सोनिया मैडम को खुश करने के लिए इस अधिकारी को अनुशासनहीनता के नाम पर चार्जशीट जारी कर प्रताड़ित किया। फिर भी अधिकारी ने हार नही मानी हुड्डा सरकार की भ्रष्ट व्यवस्था पर चोट करता रहा।

भाजपा की खट्टर सरकार के गठन के पश्चात यह उम्मीद बंधी थी कि अब भ्रष्ट अधिकारियों की जगह अशोक खेमका जैसे अधिकारियों को वरीयता मिलेगी। ध्यान रहे कि बीजेपी ने चुनाव प्रचार के दौरान रोबर्ट वाड्रा लैंड-डील प्रकरण को बहुत जोर-शोर से उठाया था। यह वादा किया था कि सत्ता में आने पर सरकार तह तक जाकर इस भूमि घोटाले की जांच कराएगी और आरोप का प्रमाण मिलने पर वाड्रा के खिलाफ आपराधिक वाद दर्ज कराया जायेगा। सरकार इस मामले में अपनी और से कुछ करती इसके पूर्व सीएजी की विधानसभा में पेश ऑडिट रिपोर्ट से रोबर्ट वाड्रा की कंपनी “द स्काईलाइट हॉस्पिटैलिटी” पर हुड्डा सरकार द्वारा की गयी मेहरबानी उजागर हो गई। सरकार को इस रिपोर्ट के आधार पर बिना समय गँवाए एक समिति गठित कर जांच शुरू करवा देना अपेक्षित था लेकिन मुख्यमंत्री की प्राथमिकता में शायद यह नहीं है। रिपोर्ट आने के बाद जब पत्रकारों ने संदर्भित प्रकरण में आगे की कार्यवाही के बारे में पूछा तो उनका सीधा जबाब था कि अभी उनकी प्राथमिकता में सकारात्मक बिंदुओं को हाथ में लेकर कार्य करने का है। उनके अनुसार वाड्रा प्रकरण में क़ानून अपना काम करेगा। यह रटा-रटाया जुमला सरकार की मामले को महत्व न देने की सोच की ओर इंगित करता है। रिपोर्ट आने के बाद खेमका ने भी कहा था सीएजी ने भी उनके द्वारा वाड्रा लैंड-डील में लगाये गए कई आरोपों की पुष्टि की है लेकिन कई ऐसे आरोप हैं जिसपर ध्यान नही गया है। अतएव सरकार से अपेक्षा की थी कि अपने स्तर से तत्काल जांच करवाये। लगता है सरकार को खेमका की यह टिपण्णी भी अच्छी नही लगी। यह भी सुनने में आ रहा है कि परिवहन विभाग के मंत्री का भी सामंजस्य खेमका से ठीक नही बैठ पा रहा था। इसके पीछे का मुख्य कारण था परिवहन आयुक्त का स्पष्ट और ईमानदार होना।

जो भी हो खट्टर सरकार भी हुड्डा की पंक्ति में खड़ी हो गई जिसने एक ईमानदार अधिकारी को प्रताड़ित किया। आज दिन भर टीवी चैनलों पर खट्टर सरकार की पारदर्शिता एवं जीरो-भ्रष्टाचार की धज्जियाँ उड़ रही है लेकिन किसी से कोई जबाब देते नही बन रहा है। इससे यह भी सिद्ध हो रहा है कि सभी दलों का विशेषकर बीजपी और कांग्रेस में आपस में समझौता है कि कोई एक दूसरे के पुत्र-पुत्रियों एवं रिश्तेदारों के भ्रष्टाचार के बारे न तो कुछ बोलेगा और न ही कोई कार्यवाही करेगा। जनता में यह भी धारणा बनती जा रही है कि बीजेपी भी भ्रष्टाचार के बारे नारे कुछ देती है, करती है कुछ और। यह वाड्रा के लैंड-डील मामले में चुप्पी साधने एवं अशोक खेमका के तबादले से स्वतः प्रमाणित हो रहा है। इसका असर बिहार, बंगाल एवं उत्तर प्रदेश में होने वाले आगामी विधानसभा चुनावों में अवश्य दिखेगा।

खट्टर जी के बारे में कहा जाता है कि ये एक सुलझे हुए, सरल, ईमानदार एवं निर्णय लेने वाले व्यक्ति हैं। ऐसे व्यक्तित्व को धारण किये हुए मुख्यमंत्री से कम से कम यह उम्मीद तो नही थी कि अशोक खेमका जैसे अधिकारी जिनकी पूरे देश में छबि भ्रष्टाचार से विरुद्ध संघर्ष करने वाले एक आइकॉन के रूप में है, का स्थानान्तरण कर देंगे। आप तो ऐसे नही थे कि लोग आप को दूसरा हुड्डा मनाने लगे। दुर्भाग्यवश ऐसा ही हो रहा है।

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