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मोदी बनाम आरएसएस

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा चुनाव प्रचार से लेकर अब तक केवल विकास के मुद्दे को लेकर आगे बढ़ने बात की है। इस प्रयास में वे सभी देशवासियों से सहयोग की अपील करते हैं। उनका महत्वपूर्ण नारा ‘सबका साथ, सबका विकास’ सबको साथ लेकर चलने की बात करता है। दूसरी ओर भाजपा के कुछ नेता और कुछ संगठन इसके उलट कृत्य करते दिख रहे हैं। यह विडम्बना ही है कि जिस संस्था से प्रेरणास्वरुप ऊर्जा प्राप्त कर श्री नरेंद्र मोदी आज इस स्थान पर पहुंचे वही अब इनके मार्ग में कांटे बिछा रही है। आरएसएस एवं इससे जुड़े अनुषांगिक संगठन के लोग भरसक वे सारे यत्न कर रहे हैं जिससे कि मोदी के विकास के एजेण्डे से सरकार पथ विचलित हो जाये। अभी दो दिन पहले धर्म प्रचार समिति के रामेश्वर सिंह ने यह विवादित बयान देकर माहौल गर्म कर दिया कि 2021 तक भारत मुस्लिम एवं ईसाई मुक्त हो जायेगा। अब आरएसएस के मुखिया मोहन भागवत ने भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने की बात करके नया विवाद पैदा कर दिया। इतना ही नहीं इन संगठनों के पदाधिकारी इस बात पर अड़े हुए हैं कि उनका घर वापसी/पंथ-परिवर्तन का कार्यक्रम किसी भी दशा में नहीं रुकेगा। इतना ही नही वीएचपी के प्रमुख अशोक सिंघल ने कहा कि राजपूत राजा पृथ्वीराज चौहान के बाद करीब आठ सौ साल पश्चात दिल्ली में एक ऐसी सरकार आई है जो हिंदुओं के बारे में सोचती है और उनकी रक्षा के लिए कटिवद्ध है। उन्हें इस बात से कोई मतलब नही कि ऐसे बयानों से मोदी सरकार की छबि धूमल हो रही है। पंथ-परिवर्तन के विषय को लेकर पिछले पूरे सप्ताह राज्यसभा में हुए कोलाहल के कारण कोई कार्य नहीं हो सका। कई महत्वपूर्ण बिल सांसदों एवं आरएसएस से सम्बद्ध पदाधिकारियों के विवादित बयानों के कारण अव्यवस्थित सदन के समक्ष नहीं रखे जा सके। इससे तो मोदी का विकास का एजेंडा जमीन पर उतरने से रहा।

कहीं ऐसा तो नही कि मोहन भागवत और उनकी मंडली मोदी जी को असफल करने में लगी हुई है। इस बात की पुष्टि इससे होती है कि पिछले ही मंगलवार को संसदीय दल की बैठक में मोदी जी ने सभी सांसदों एवं अन्य पदाधिकारियों को स्पष्टरूप से बता दिया था कि उनके बयानों से सरकार की छबि धूमिल हो रही है। इसी क्रम में उन्होंने लक्ष्मण रेखा पार न करने की हिदायत दी थी फिर भी कुछ बयानबीरों ने अनावश्यक एवं विवादित बयान देकर मोदी के विकास के मुद्दे को बेपटरी करने का प्रयास किया। इन सब को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि मोहन भागवत, अशोक सिंघल और प्रवीण तोगड़िया अपने किन्ही निजी कारणों से मोदी से बदला लेने का प्रयास कर रहे हैं। अन्यथा ऐसी कोई वजह नही दिखती कि जिससे इन लोगों या इनके संगठनों से जुड़े पदाधिकारियों द्वारा कोई न कोई लगभग रोज दिये जाने विवादित बयानों पर रोक न लग सके। ऐसा भी नहीं कि इन लोगों को मोदी सरकार की प्राथमिकता का पता न हो। शायद इन लोगों को गुमान है कि केंद्र में भाजपा की सरकार इनके ऐसे अभियानों के कारण आयी है। इसलिए वे सोच रहे हैं उन्हें अपने एजेंडे को आगे करने इससे उपयुक्त कोई समय नही है।

स्वामी दयानंद सरस्वती ने ‘शुद्धि कार्यक्रम’ चलाकर हिन्दू से इस्लाम एवं ईसाई पंथ में परिवर्तित लोगों को घर वापसी हेतु आह्वाहन किया। सन् 1877 में उन्होंने स्वयं देहरादून के एक मुस्लिम युवक को वैदिक धर्म में प्रवेश कराया। बाद में इसी शुद्धि कार्यक्रम ने स्वामी श्रद्धानन्द के नेतृत्व में एक आंदोलन का रूप ग्रहण किया। इस आंदोलन का विरोध अंग्रेजी शासन की ओर से नहीं हुआ। हालांकि आर्य समाज ने इसकी कीमत पं. लेखराम एवं स्वामी श्रद्धानंद की जान की कीमत देकर चुकायी। आज का माहौल बदला हुआ है। स्वेच्छा से भी हुए पंथपरिवर्तन को तथा-कथित सेक्युलर दल वोट बैंक के लिए तूल देने का प्रयास करने में जुटे रहते है। उन्हें मोदी के विकास के एजेंडे को असफल करने लिए ऐसे बयान एक मजबूत हथियार के रूप में स्वतः प्राप्त हो रहे हैं।

ऐसे समाचार मिल रहे हैं कि हिदायत के बाद भी दिए जा रहे बयानों से मोदी इतने दुखी है कि उन्होंने पद छोड़ने तक की कह दिया हैं। हो भी क्यों नही जब अपने ही लोग उनकी विकास की प्रथमिकता को परिवर्तित करने में लगे हुए है। ध्यान रहे कि भाजपा को विकास के नाम पर ही स्पष्ट बहुमत मिला है न कि धर्मान्तरण पर। वोट मोदी के नाम पर मिला है धर्मान्तरण पर नही। तब फिर क्यों इतनी छीछालेदर करा रहें हैं ये लोग?

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