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मीडिया का भी दायित्व

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लोकतंत्र के चार स्तंभों में मीडिया भी एक है। सभी स्तंभों की अपने-अपने क्षेत्रों में कार्य करते हुए देश की लोकतान्त्रिक व्यवस्था को मजबूती प्रदान करने की जिम्मेदारी है। इनमें मीडिया की जिम्मेदारी कुछ अलग है क्योंकि यह जनमानस को कार्यपालिका, विधायिका एवं न्यायपालिका के दिन-प्रतिदिन के क्रियाकलापों से अवगत कराती रहती है। देश एवं समाज में होने वाली हर घटना से गाँव और शहर के लोग मीडिया से सूचित होते हैं। राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय हर समाचार हमें कुछ ही मिनटों में मिल जाते है। इस प्रकार से अब पूरा विश्व सिकुड़ कर अतिसूक्ष्म हो गया है। इस माध्यम का लाभ तभी है जब सभी को सही एवं सटीक समाचार मिले; यही इसका सकारात्मक पक्ष भी है।

मीडिया के तीनों प्रकारों, यथा इलेक्ट्रोनिक, मप्रिंट एवं सोशल में इलेक्ट्रोनिक मीडिया विजुअल और आसानी से उपलब्ध होने के कारण तेजी से प्रभाव छोड़ता है। प्रिन्ट एवं सोशल मीडिया के प्रभाव को कमतर नहीं आँका जा सकता है लेकिन इलेक्ट्रोनिक मीडिया की पहुँच कहीं ज्यादा है। लगभग अस्सी प्रतिशत से ज्यादा है। देश में कोई न कोई टीवी चैनल देश के प्रत्येक क्षेत्र के ग्रामीण अंचलों तक फैला हुआ है। कोई मनोरंजन के लिए टीवी देखता है, कोई बिजनस के लिए और कोई समाचार के लिए। टीवी पर जो दिखाया जाता है वह दर्शक के मन-मस्तिष्क पर गहरा असर डालता है। इसीलिये यह आवश्यक है कि प्रमाणिक एवं साकारात्मक चीजें ही दिखाई जाएँ लेकिन प्रतीत होता है कि भारतीय टीवी चैनलों में ऐसी सोच का अभाव है।

आगरा में दो दिन पहले धर्मान्तरण/घर वापसी का एक प्रकरण सामने आया। ऐसा बताया गया कि आरएसएस के अनुषांगिक संगठन हिन्दू जागरण मंच द्वारा कुछ मुसलमानों का धर्मपरिवर्तन कराकर हिन्दू कराया गया है। इसको लेकर पूरे देश में तहलका मच गया। तथाकथित बुद्धिजीवियों एवं सेक्युलरिस्टो नें तहलका मचाते हुए बीजेपी पर धावा बोल दिया। मीडिया ऐसे ही अवसरों को भुनाने का पूरा प्रयास करता है और इसे ऐसा ही एक मौका मिल गया। इस प्रकरण को जिन्दा रखते हुए अनेक चैनल प्रमुखता से समाचार चला रहे है और चर्चा करा रहे हैं। आश्चर्य तो यह होता है कि इन कार्यक्रमों के दौरान बार-बार वह क्लिप दिखा रहे हैं जिसमे मुस्लिम परिवार हवन करते हुए दिख रहे हैं। किसी चीज को देखने और सुनने में बड़ा अंतर होता है। कोई चीज देखकर व्यक्ति ज्यादा उत्तेजित होता है। क्या कई दिनों तक ऐसे समाचारों एवं वीडियो चलाकर इलेक्ट्रोनिक मीडिया अल्पसंख्यक समाज को भड़काने का काम नहीं कर रही है? इस तरह के न्यूज एवं वीडियो को ब्रेकिंग न्यूज बनाकर टीआरपी तो बढ़ाई जा सकती है लेकिन सबकुछ समाज को नुकसान पहुंचाकर।

इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि आरएसएस एवं उसके अनुषांगिक संगठन तथा भाजपा के अपने सांसद एवं मंत्री प्रधानमंत्री मोदी के विकास के मुद्दे को पटरी से उतारने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे हैं। ऐसे बयानों का कोई समर्थन नहीं कर सकता। राज्यसभा में अब धर्मपरिवर्तन के मुद्दे को लेकर हंगामा मचा हुआ है। योगी आदित्यनाथ के बयानों को लेकर तूफ़ान मचा हुआ है। वहीँ दूसरी और अहमद बुखारी तथा मुरादाबाद मैं एक मौलाना द्वारा दिए गए बयान कि “मुसलमान देश के खिलाफ युद्ध करने से भी नहीं हिचकेगें” पर शायद ही किसी चैनल ने ध्यान दिया हो। खैर ऐसे समाचारों को अहमियत देने की आवश्यकता भी नहीं है क्योंकि इनसे विद्वेष ही फैलता है। फिर भी मीडिया का उभयपक्षी होना आवश्यक है लेकिन ऐसा नहीं होता है। क्या मीडिया का अपना कोई दायित्व नहीं है?

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