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मोदी के अपने ही अवरोधक

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प्रायः देखा जा रहा है कि भाजपा का कोई न कोई सांसद या मंत्री कुछ ऐसा वक्तव्य दे दे रहा है जिससे सरकार की सदन के अन्दर एवं बाहर छीछालेदर हो रही है। अभी पिछले सप्ताह किसी तरह से राजसभा एवं लोकसभा में साध्वी निरंजन, केंद्रीय राज्यमंत्री, के एक बयान के कारण मचा तूफ़ान किसी तरह से क्षमा मांगने के पश्चात समाप्त हुआ ही था कि एक और सांसद साक्षी महाराज ने नाथूराम गोडसे को ‘नेशनलिस्ट’ बताकर एक नया विवाद पैदा कर दिया। यद्यपि बयान देने के थोड़ी देर बाद ही गलती का भान होने पर उन्होंने अपने आपत्तिजनक शब्दो को वापस ले लिया। फिर भी पार्टी एवं सरकार का जितना नुकसान होना था हो गया। दोनों सदनों में हो-हल्ला हुआ और कार्य वाधित हुआ। लोकसभा में सांसद महोदय माफ़ी मांगनी पड़ी। कल दोनों सदनो में आगरा में हुए धर्मपरिवर्तन को लेकर हंगामा हुआ। इसी बीच मोदी कैबिनेट की एक वरिष्ठ मंत्री श्रीमती सुषमा स्वराज ने ‘गीता’ को राष्ट्रीय पुस्तक घोषित करने हेतु सुझाव देकर अनावश्यक ही एक नए मामले को तूल दे दिया। इतना ही नही रही सही कसर उत्तर प्रदेश के राज्यपाल श्रीराम नाईक ने यह बयान देकर पूरी कर दी कि देश की जनता चाहती है कि अयोध्या में जल्द से जल्द राम मन्दिर का निर्माण हो। ये सारे बयान मोदी की अपनी पार्टी के सांसद, मंत्रियों एवं सरकार द्वारा नियुक्त राज्यपाल द्वारा दिए गए हैं।

प्रधानमंत्री मोदी जी जहाँ केवल विकास की बात कर रहे हैं वही उनके अपने लोग इसके इतर बयानबाजी करते हुए विरोधियों जैसा व्यवहार कर रहे हैं। यह विकास जैसे मुद्दे से ध्यान हटाने का एक कुत्सित प्रयास लगता है। ऐसे में मोदी को दो मोर्चों पर लड़ाई लड़नी पड़ रही है: एक विपक्ष से, दूसरा अपने लोगों से। आरएसएस एवं उसके अनुषांगिक संगठन भी अपनी तरफ से मोदी के विकास के मुद्दे को बेपटरी करने में अहम् भूमिका अपना रहे हैं। आगरा में हुआ धर्मपरिवर्तन एक ताज़ा उदहारण है। आरएसएस प्रमुख भी प्रायः कुछ ऐसा बोल देते हैं जिससे बवाल खड़ा हो जाता है। कभी हिन्दू राष्ट्र की बात करते हैं, कभी देश के सभी नागरिकों के हिन्दू होने की। उनके इन विचारों से असहमत नहीं हुआ जा सकता है लेकिन यह ऐसे विचारों के लिए उचित समय नहीं है। मोदी जब सबका साथ सबका विकास की बात करते हैं तब इन बातों से संदेह का वातावरण बनता है। चुनाव प्रचार के दौरान जितने वादे किये गए हैं उन्हें पूरा करने लिए प्राथमिकता का दबाव सरकार के ऊपर है। मोदी सरकार के सामने बेरोजगारी, महंगाई, आर्थिक विकास एवं आधारभूत संरचना जैसे अनेक मुद्दे हैं जिसके लिए कार्य करना है। सरकार निःसंदेह इन क्षेत्रों में काम करती दिख रही है लेकिन अपने ही पक्ष द्वारा अनावश्यक बयानबाजी अवरोधक बनकर खड़ी हो जा रही है। कई महत्वपूर्ण बिल पास कराये जाने हैं लेकिन इन बयानबीरों की भूमिका के कारण दोनों सदन अव्यवस्था के शिकार हो रहे हैं। विपक्ष के पास रोज सदन की कार्यवाही बाधित करने का बैठे बैठाये मौका मिल जा रहा है। इसके साथ ही साथ भाजपा एवं सरकार के प्रति बनी अवधारणा में भी क्षरण हो रहा है।

विपक्ष इस समय मुद्दा विहीन है। मोदी के बढ़ते हुए कदम को रोकने के लिए कांग्रेस सहित सभी विपक्षी दल बेचैन हैं। क्षद्म-समाजवाद की रोटी सेकने वाले दल जैसे जेडीयू, सपा, आईएनएलडी, सजपा एवं जनता दल (एस) मोदी के विरुद्ध एक जुट होकर अपने अस्तित्व को बचाने की लड़ाई लड़ने की तयारी कर रहे हैं। मोदी की लोकप्रियता से विपक्ष इस तरह घबरा गया है कि उसके समझ में नही आ रहा कि आगे क्या करें। ऐसे में मोदी के अपने ही रोज-ब-रोज एक मुद्दा उन्हें पकड़ा दे रहें है जिससे उन्हें सरकार को घेरने का अच्छा मौका मिल जा रहा है।

संभवतः मोदी जी ने अपनी नाराजगी इन बयानबीरों के पास पंहुचा दी है। इसका संकेत सभी को मिल गया है। यदि फिर भी इनकी वाणी एवं व्यवहार में सुधार नहीं आता है तो माना जायेगा कि कहीं न कही मोदी के खिलाफ कोई साजिश हो रही है। ऐसी स्थिति मोदी को बेहद सतर्क रहते हुए कार्य करते रहना होगा।

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