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बड़बोले नेता मोदी की राह में रोड़ा

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यह प्रायः देखा जा रहा है कि नेताओं को आपसी या जनता के साथ संवाद में अशिष्ट भाषा एवं शब्दों के प्रयोग करने में जरा सी भी हिचकिचाहट नहीं होती है। ऐसा किसी एक दल नहीं बल्कि सभी दलों के नेताओं द्वारा किया जा रहा है। राजनीति में यह विकृति तेजी से फैल रही है। विडम्बना तो यह है कि किसी भी दल द्वारा आगे बढ़कर अपने नेताओं के इस तरह के आचरण पर अंकुश लगाने का प्रयास नहीं किया जाता, बल्कि दूसरे दल के नेताओं के ऊपर दोषारोपण कर ऐसे मामलों को नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है। इस प्रवृत्ति ने देश कि राजनीति को गिरावट के अब तक सबसे निचले स्तर पर लाकर खड़ा कर दिया है। ऐसा लगता है कि नेता बेलगाम हो गए हैं और उन्हे गाली-गलौज की भाषा से कोई गुरेज़ नहीं है। उनपर तो कोई असर होता नहीं दिखता लेकिन जनता जिन्होंने उन्हे चुना जरूर शर्मिंदगी महसूस करती है।
नवीनतम प्रकरण में साध्वी निरंजन ज्योति, केंद्रीय राज्यमंत्री द्वारा दिल्ली की चुनावी बैठक में दिये गए भाषण का वह अंश है जिसने संसद के दोनों सदनों एवं मीडिया में भूचाल ला दिया है। मंत्री महोदया के भाषण का वह अंश उनके पद की गरिमा को निश्चित रूप से गिराने वाला एवं निंदनीय है। भाषण में शब्दों एवं भाषा तथा विषय वस्तु का चयन गैर-जिम्मेदार ढंग से किया गया जो कि स्पष्ट रूप से गाली-गलौजपूर्ण था। विचित्र बात तो यह कि जब मीडिया ने इस सम्बन्ध में उनके बयान के बारे में जानना चाहा तो उन्होने अपने वक्तव्य को सही सिद्ध करने का प्रयास किया। परिणाम यह हुआ कि राज्यसभा पूरे दिन के लिए स्थगित करनी पड़ी और लोकसभा भी आंशिक रूप से ही चली और कोई विधायी कार्य नहीं हो सका। मंत्री जी को अपने अशिष्टतापूर्ण वक्तव्य के लिए माफी मांगनी पड़ी। विपक्ष ने मोदी एवं उनकी सरकार पर प्रहार करते हुए सांप्रदायिकता को बढ़ावा देने का आरोप लगाया और मंत्री को मंत्रिपरिषद से हटाए जाने तक सदन न चलने देने की धमकी दी और ऐसा कर भी रहे हैं। ऐसे छीछालेदार कराने वाले मंत्री एवं पार्टी के नेता सरकार की छबि को गहरी चोट पहुंचा रहे हैं।
प्रधानमंत्री के ‘सुशासन एवं विकास’ के मुद्दे को उनके अपने मंत्री और पार्टी के नेता बे-पटरी पर करने को तुले हुए हैं। उत्तर प्रदेश के उप चुनाव में पार्टी ने ‘लव जेहाद’ जैसे मुद्दों को उठाकर अपनी जीती हुई तेरह सीटों में से केवल तीन को बचा सकी। फिर भी उनके नेता अभी उन्ही विषयों को उठाकर अपने बेतुके एवं अशिष्ट संबोधनों से जनता को प्रभावित करने का प्रयास कर रहे हैं जबकि जनता केवल और केवल सुशासन और विकास की बात सुनना चाहती है। यद्यपि की प्रधानमंत्री ने सभी मंत्रियों एवं सांसदों को कड़ाई के साथ आगाह किया है कि ऐसे विवादस्पद बयानों से बचें।
हम सभी ने देखा है कि किस तरह यूपीए-2 सरकार के कुछ मंत्रियों ने बीजेपी एवं विशेष तौर पर मोदी जी के लिए ऐसे-ऐसे शब्दों प्रयोग किया जो कि साध्वी निरंजन ज्योति के शब्दों एवं भाषा से निकृष्टम स्तर के थे। जनता को यह भी अच्छी तरह याद है कि किस तरह विपक्षी दलों, तथाकथित सेक्युलरिस्टों एवं बुद्धिजीवियों, वामपथी विचारकों, स्वयंसेवी संस्थाओं एवं मीडिया के कुछ घरानों द्वारा पिछले बारह वर्षो से लगातार नरेंद्र मोदी के लिए अपमानजनक शब्दों एवं भाषा का प्रयोग किया जाता रहा है। इन सबका जो परिणाम हमें लोकसभा के चुनाव में देखने को मिला वह सबके सामने है। विपक्ष, विशेष तौर पर कांग्रेस, के पास मोदी सरकार से मुक़ाबला करने के लिए कोई मुद्दा नहीं है, इसीलिए घूम-फिर कर अपने पुराने सांप्रदायिकता पर मुद्दे आ जाती है। ऐसे में साध्वी नीराजन ज्योति के वक्तव्य को भी सांप्रदायिक घोषित कर वोट बैंक के लिए राजनीतिक खेल खेला जा रहा है। सरकार एवं बीजेपी के नेताओं के लिए ‘सबका साथ सबका विकास’ मूल मंत्र होना चाहिए। ऐसे वक्तव्यों से विकास की बात पीछे छूट जाती है; बेतुके बोल आगे। यदि फिर भी ऐसे बयान आते हैं तो यह ‘सेल्फ गोल’ के अलावा कुछ नहीं होगा।

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