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जब व्यक्ति बिना परिश्रम किये संक्षिप्त रास्ते से धन-दौलत, यश-कीर्ति पाने की लालसा रखता है, व्याधि आदि से मुक्ति चाहता है तो वह ऐसे किसी चमत्कारिक शक्ति की खोज में निकल पड़ता जो तत्काल उसकी मुराद पूरी कर सके। उसे ऐसे अनेक तथाकथित सिद्ध पुरुष जो अपने को चमत्कारिक शक्तियों से पूर्ण बताते हैं, सहजता से मिल जाते हैं। अपनी वाकपटुता से उस व्यक्ति की मनोकामना की पूर्ति का पूरे विश्वास के साथ वचन देते हैं। एक बार ऐसे तथाकथित सिद्ध पुरुष के संपर्क में आ जाने के बाद किसी भी व्यक्ति का उसकी पकड़ से बाहर निकाल पाना आसान नहीं होता है। इस बात से अवगत होते हुए भी कि जिस चमत्कार से कष्ट दूर होने की बात की जाती है वह स्पष्ट रूप से ठगी है, फिर भी लोग ऐसे ठगों की ओर खींचे चले जाते हैं। उदाहरण स्वरूप निर्मल बाबा का प्रकरण हमारे सामने है। धोखाधड़ी जगजाहिर होने के बाद भी इनके समागम में लोग पूर्व की भांति भाग ले रहे हैं। ऐसे कार्यक्रमों का प्रसारण भी टीवी चैनलों पर नियमित रूप से चल रहा है। जब सामने बैठी भीड़ को सत्य और असत्य में भेद का कोई भान न हो तब तथाकथित चमत्कारी बाबा इसका लाभ उठायेगा नहीं तो क्या करेगा क्योंकि उसका तो लक्ष्य ही होता है झूठ-फरेब से पैसे ऐठना।
जीव का कर्म के साथ अटूट संबंध है और कर्म का फल के साथ। मानव को जीवन में दुख-सुख, लाभ-हानि, शुभ-अशुभ आदि उसके कर्मानुसार ही मिलता है, न थोड़ा ज्यादा और न थोड़ा कम। कर्म और फल का सम्बन्ध कार्य-कारण-भाव के नियम पर आधारित है। यदि कारण मौजूद है तो कार्य अवश्य होगा। यही प्राकृतिक नियम आचरण के मामले मे भी सत्य है। किये गये प्रत्येक कर्म का फल कर्ता को ही भोगना होता है। इसमे किसी प्रकार की एवजी नहीं चलती। यदि कर्ता अपने द्वारा किये गये सभी कर्मो का फल भोगे बिना ही मृत्यु को प्राप्त होता है तो उसे पुनर्जन्म पश्चात प्रारब्ध के शेष कर्मों का फल भोगना ही पड़ता है। देहावसान के पश्चात जीव केवल शरीर बदलता है। कर्ता के रूप में उसकी कभी मृत्यु नहीं होती है। जीवात्मा दुख-सुख, जीवन मरण आदि से परे होती है। जन्म-मृत्यु तो शरीर की होती है। ईश्वर की इसी व्यवस्था के अंतर्गत इस संसार में जीव का आना-जाना तब तक जारी रहता है जब तक वह अंतिम लक्ष्य मोक्ष को नहीं प्राप्त कर लेता। अन्य मत, जो पुनर्जन्म में विश्वास नहीं रखते, उनमे भी कयामत के दिन, न्याय या डूम्स डे के दिन कर्म के आधार पर ही रूहों के बारे मे निर्णय सुनाया जाएगा। इसीलिए उनके यहाँ आखिरत के दिन को ध्यान रखकर नसीहते दी जाती हैं। यह सर्व विदित है कि जीव कर्म करने में स्वतंत्र है लेकिन फल भोगने में नहीं। जीव के कर्मानुसार फल का निर्धारण ईश्वर, जो कि निराकार, सर्वव्यापक, अजन्मा, अनन्त, अनादि, अजर, अमर, नित्य, सर्वशक्तिमान, न्यायकारी, दयालु, अंतर्यामी एवं सृष्टिकर्ता है, करता है। ऐसी महान शक्ति को धारण करने वाले परमात्मा को किसी सहायक की आवश्यकता नहीं होती है और न ही उसकी शक्तियों का कोई बंटवारा हो सकता है क्योंकि वह सर्वव्याप्य है। फिर इन तथाकथित बाबाओं, मसीहों एवं फकीरों में कौन सी ईश्वरीय शक्ति आ गई जिसे ये बांटते घूम रहें हैं।
कुछ दिनों पहले निर्मल बाबा (असली नाम निर्मलजीत सिंह नरूला) के समागम और उसमे की जाने वाली अनर्गल एवं अवैज्ञानिक बातों की मीडिया में व्यापक चर्चा हुई। बात आगे बढ़ी तो कुछ भुक्त भोगियों ने बाबा के पाखंड का पोल खोलते हुए उनपर धोखाधड़ी का आरोप लगाया। कई जगह उनके विरुद्ध एफआईआर दर्ज हुई। मीडिया वालों ने जब गहराई तक जाकर जांच पड़ताल की तो विस्मयकारी खुलासा हुआ। सूत्रों के अनुसार बाबा के पास 240 करोड़ की संपत्ति है जो कि लोगों के साथ धोखा करके ऐंठा गया है। मैंने भी इस बाबा के कुछ समागम के कार्यक्रमों को टीवी पर इस आशय से देखा कि कौन सी ऐसी दिव्य शक्ति इनको प्राप्त हो गई है जिससे इनका तीसरा नेत्र जागृत हो गया है। बाबा द्वारा समागम में दर्शनार्थियों से यह पूछना कि आज आप ने गधा देखा, आप के पास पर्स है, आप ने लड्डू खाया, आप ने साँप देखा आदि सिद्ध करता है कि ऐसी ऊल-जलूल बातें किसी अज्ञानी एवं मूर्ख व्यक्ति की ही हो सकती है। ऐसी बाते करके एवं अपने तीसरे नेत्र से भक्तों की समस्या समझ कर उनके ऊपर कृपा की बौछार करना, पाखंड के अलावा कुछ नहीं है। कुछ ठीक इसी तरह कोई डेढ़ दशक पूर्व चंद्रास्वामी का तांत्रिक के रूप में भूतपूर्व प्रधानमंत्री स्व॰ नरसिम्हा राव के कार्यकाल में उदय हुआ। प्रधानमंत्री से निकटता के कारण राजनैतिक क्षेत्र में ऊंची पहुँच बनी। चंद्रास्वामी अपने तथाकथित चमत्कारिक शक्ति के कारण देश-विदेश के अनेक नेताओं के साथ ही साथ अदनान खगोशी जैसे कुख्यात हथियार के सौदागर से भी जुड़े रहे। उनके खिलाफ आर्थिक अपराध के अलावा भूतपूर्व प्रधानमंत्री स्व॰ राजीव गांधी की हत्या में वित्तीय मदद का भी आरोप लगा। ऐसे तथाकथित दिव्यशक्ति वाले स्वामी केवल अंधविश्वास को बढ़ावा देकर समाज को ही नहीं बल्कि राष्ट्र को भी गंभीर क्षति पहुंचाते है। इसी तरह बाल्टी बाबा भी चमत्कार के नाम पर ढोंग रचकर लोगों को दिग्भ्रमित करते थे। कहा तो यहाँ तक जाता है की ये महाशय बकरों एवं मुर्गों के खून से नहलवा कर नेताओं को चुनावों में जीत हासिल करवाने के लिए पाखंडी धार्मिक अनुष्ठान करवाते थे। इन्ही की तरह ग्रामीण क्षेत्रों में ओझा और सोखा भी पाखंड रचकर धन-दौलत एवं अंधविश्वास के वशीभूत निःसंतानियों को पुत्र प्राप्ति की लालच देकर नरबली तक चढ़वा देते हैं। यह अंधविश्वास का एक क्रूरतम एवं मानवता को अंदर तक हिला देने वाला स्वरूप है जो कि सभ्य समाज के लिए कलंक है।
चमत्कार को ही सत्य मान लेने वालों की कमी नहीं है। अब यहाँ हम एक ऐसे शख्स डॉ॰ पाल दिनाकरण की तथाकथित चमत्कारिक शक्तियों के बारे मे चर्चा करेंगे जो कि वर्तमान में लगभग 5000 करोड़ कि संपत्ति के स्वामी हैं। इनके पिता डॉ॰ डी॰जी॰एस॰ दिनाकरण, जैसा कि वे स्वयं कहते थे, को ईसा मसीह ने साक्षात दर्शन देकर अपनी शक्तियाँ दी। बाद में यही शक्तियाँ बेटे में स्थानांतरित हो गईं। ये भी निर्मल बाबा की तरह गाडमैन बनकर लोगों को कृपा और आशीर्वाद बाँट रहे हैं और उनके दैहिक व दैविक दुखों को मिटा रहे हैं। यहाँ इन महाशय के पाखंडी चमत्कार का नमूना इस तरह है कि एक बार एक “ब्लेसिंग गैदरिंग” में 5 लाख लोग इकट्ठा हुए थे कि अचानक बारिश शुरू हो गई। इस मसीहा ने “गाड” से बारिश बंद करने को कहा तो बंद हो गई। लोग झूम उठे और इनकी स्व-घोषित ईश्वरीय शक्ति के वशीभूत हो गये। फिर क्या, चल पड़ी इनके पाखंड की दुकान और आज देश ही नहीं विदेशों में भी इनकी मसीही की तूती बोल रही है। यह केवल अज्ञानी ही मान सकता है कि किसी के कहने मात्र पर बारिश बंद हो जाए क्योंकि यह ईश्वरीय व्यवस्था एवं प्रकृति के नियमो के विरुद्ध है। यहाँ तो ऐसा लगता है कि डॉ॰ पाल स्वयं ईश्वर हो गये है ईश्वर इनका आज्ञाकारी शिष्य। आगे बढ़े तो पाते हैं कि सत्य साईबाबा भी इसी तरह का चमत्कार करते हुए अपने घुँघराले बालों से भभूत, मेवा, सोने-चांदी के आभूषण, घड़ियाँ आदि निकाल कर अपने शिष्यों को दिखाते थे। इन्ही चमत्कारों के प्रभाव से इनके मठ के पास भी हजारों करोड़ की सम्पदा है। बाबा ने भविष्यवाणी की थी कि उनकी मृत्यु 96वें वर्ष में होगी लेकिन 85 के पहले ही परलोक को सिधार गये। इस मामले में कहाँ गईं इनकी दिव्य शक्तियाँ। इसे बाबा का पाखंड एवं शिष्यों का अंधविश्वास कहें या फिर कुछ और। जिस देश में इस तरह के विलक्षण शक्ति वाले दिव्य पुरुष मौजूद हो उसे किसी तरह की चिंता होनी ही नहीं चाहिए। इनका उपयोग देश की सीमा की सुरक्षा, सूखा, बाढ़ एवं आपदा आदि के समय करना चाहिए। जिस तरह के हथियार की आवश्यकता हो वे पलक भजते ही उपलब्ध करा देंगे। बारिश की तरह बाढ़, भूकंप आदि पहले से जानकर रोक देंगे। मौसम विज्ञानी की कोई आवश्यकता नहीं होगी। यदि वे ऐसा नहीं कर पाते हैं तो निश्चित रूप से यह उनकी ठगी एवं पाखंड है।
मुस्लिम समुदाय में भी कुछ इसी तरह के तथाकथित चमत्कारी फकीर, मुल्ला, गाजी और पीर हैं जो जिन्न भगाने, झाड-फूंक करने, ताबीज-गंडा बांधने आदि की दुकाने चलाते हैं। झाड-फूँक का एक वीभत्स दृश्य किछौछा, जनपद अकबरपुर, उ॰ प्र॰ में मकदूम अशरफ की मजार में देखने को मिलता है जहां विक्षिप्त औरतें अपने इलाज़ के लिए जाती हैं। उनके साथ बाल खींच-खींच कर जिन्न उतारने के लिए जो पाखंड पूर्ण कृत्य किया जाता है वह स्तब्धकारी होता है। उनके साथ बदतमीजी की इंतहा होती है। प्रायः ऐसे दरगाह पाखंड के केंद्र होते हैं। हिंदुओं के भी कई ऐसे स्थल अछूते नहीं हैं। हिन्दू जन्म से ही धर्मभीरू होते हैं। किसी भी पंथ के पूजा स्थल पर बड़ी श्रद्धा के साथ सिर झुकाते हैं। कब्रों पर जाकर मन्नत मानने वाले सबसे ज्यादा हिन्दू ही होते हैं क्योंकि उन्हे वहाँ से चमत्कार की आशा होती है। इस्लाम में बुत-परस्ती निषेध है, इसलिए इस मत का पक्का अनुयायी अमूमन ऐसा नहीं करता है। ध्यान रहे सत्य केवल सत्य ही होता है और उसका कोई विकल्प नहीं होता।
हम नित नए चमत्कारियों का उदय होते हुए देखते हैं जो पाखंड एवं अंधविश्वास द्वारा लोगों को अपने जाल में फँसाते रहते हैं। इसके लिए ऐसे बाबाओं, गाजियों, मसीहों को ही दोषी नहीं जा सकता है क्योंकि लोग ही उनके पास जाते है। इसके पीछे अशिक्षा को कारण नहीं माना जा सकता क्योंकि इन चमत्कारियों के पास जाने वाले लोगों में पढे-लिखे लोगों की संख्या कम नहीं होती है। निर्मल बाबा के समागम में प्रतिभागिता कर रहे व्यक्तियों द्वारा दिये जाने वाले परिचय से पता चलता है कि उनमें चिकित्सक, इंजीनियर, शिक्षक, बड़े-बड़े अधिकारी और व्यापारी भी उनकी दिव्य कृपा पाने के लिए आते हैं ताकि उन्हें दुख और दारिद्र्य से मुक्ति मिल सके। चंद्रास्वामी, बाल्टीबाबा के शिष्यों में बड़े-बड़े नेता ही थे। ऐसे चमत्कार के मेलों में सभी लोग इन पाखंडी बाबाओं के तीसरे नेत्र से अपने भविष्य का सब कुछ जान लेने के लिए उत्सुक रहते हैं जबकि व्यक्ति स्वयं त्रिकालदर्शी है। व्यक्ति के तीनों काल भूत, वर्तमान एवं भविष्य उसके कर्म से ही निश्चित होते हैं। पिछले जन्म में जो हमने कर्म किया है उसी का फल वर्तमान में प्रारब्ध के रूप में भोग रहे हैं, वर्तमान में जो कर रहे है उसका कुछ फल यहीं भोगेंगे और कुछ भविष्य में पुनः प्रारब्ध के रूप में। फिर हम अपना भविष्य जानने के लिए क्यों इधर-उधर भटकते हैं। जब परमात्मा हमारे प्रत्येक कर्म का न्याय पूर्वक फल देने वाला है तब ऐसे ढोंगी, पाखंडी, अंधविश्वासी एवं लुटेरे बाबाओं की कृपा और आशीर्वाद से कैसे कुछ बदल सकता है। क्या ईश्वरीय व्यवस्था में कोई संसारी व्यक्ति किसी प्रकार का हस्तक्षेप कर सकता है? इसका उत्तर ही शंकालुओं की शंका का निदान है। हाँ, इतना अवश्य है कि इन ढोंगियों के पाखंडपूर्ण कर्मो से उनके भविष्य का पता हमे जरूर चलता है क्योंकि उन्हें भी ईश्वरीय न्याय व्यवस्था के अंतर्गत उनके प्रत्येक पाखंडपूर्ण कर्म का फल उतनी ही मात्रा में इसी जन्म में या अगले जन्म में भोगना अटल है।
अन्त में, जब यह सर्व विदित है कि “सब सत्यविद्या और जो पदार्थ विद्या से जाने जाते हैं, उन सबका आदिमूल परमेश्वर है” तब भी लोग चमत्कार के रूप में विद्यमान असत्य विद्या के पीछे क्यों भाग रहे हैं, समझ से परे है। हमे तो परमात्मा से बस यही प्रार्थना करना चाहिए कि:
तूने हमे उत्पन्न किया, पालन कर रहा है तू।
सृष्टि की बस्तु-बस्तु में, विद्यमान हो रहा है तू।।
तेरा ही धरते ध्यान हम, मांगते तेरी दया।
ईश्वर हमारी बुद्धि को, सद्मार्ग पर तू चला।।
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