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दैनिक जागरण द्वारा पिछले कई दिनों से “यूपी लाओ एम्स” नाम से एक सशक्त अभियान चलाया जा रहा है। इस अभियान के फलस्वरूप लोकसभा में भी इस मुद्दे को पुरजोर तरीके से उठाया गया। केंद्र सरकार ने आश्वासन दिया की इस प्रकरण में शीघ्र ही कार्यवाही की जायेगी। इधर कुछ दिनों पहले मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव ने भी घोषणा की थी कि एम्स के लिए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय से पत्र मिलने पर भूमि उपलब्ध कराने हेतु प्रक्रिया शुरू कर दी जायेगी। और अब अन्ततः राज्य सरकार ने उत्तर प्रदेश में एम्स स्थापना हेतु जमीन चिन्हित भी कर लिया है। राज्य सरकार के अनुसार रायबरेली जनपद के ग्राम पंचायत बन्नामऊ, तहसील लालगंज में 114 एकड़ जमीन की पहचान की गई है।
यह तो अच्छा है कि राज्य सरकार का प्रदेश में एम्स सरीखे संस्थान खोले जाने को लेकर रवैया सकारात्मक है, लेकिन यह संस्थान रायबरेली में ही हो ऐसा क्यों? अगर इसे रायबरेली में ही खोला जाना था तो लगभग चार साल की देरी क्यों? हालांकि इसके लिए वर्तमान प्रदेश सरकार जिम्मेदार नहीं है फिर भी यह प्रश्न ज्यों का त्यों अनुत्तरित है कि प्रस्तावित एम्स रायबरेली में ही क्यो खोला जाना चाहिए। मायावती सरकार राजनैतिक स्वार्थवश इसे बुंदेलखंड में स्थापित करना चाहती थी लेकिन कांग्रेसनीत केन्द्र सरकार भी इसी निहित स्वार्थ के कारण रायबरेली के अतिरिक्त अन्य किसी स्थान के लिए किसी भी कीमत पर सहमत न थी और न ही है। जो केन्द्र सरकार अपने को आम आदमी की रहनुमा दिखते रहना चाहती है उसी ने उ॰ प्र॰ के 20 करोड़ आबादी को एम्स जैसे उच्चस्तरीय चिकित्सा संस्थान की सुविधाओं से बंचित रखने में कोई कसर नहीं छोड़ी। कारण रायबरेली में एम्स नहीं तो कहीं नहीं।
एम्स जैसे किसी भी संस्थान की स्थापना के लिए कुछ न कुछ मापदंड अवश्य निश्चित होते हैं जिसके अंतर्गत आगे की कार्यवाही की जाती है। स्थल चयन हेतु भी कुछ मापदंड जैसे आबादी का घनत्व, भौगोलिक स्थिति, सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति, स्वास्थ्य सुविधाओं कि उपलब्धि आदि अवश्य होने चाहिए और निश्चित रूप से होंगे भी। फिर एक स्थान विशेष के लिए केन्द्र सरकार की जिद क्यों? ऐसा प्रतीत होता है कि श्रीमती सोनिया गांधी की इच्छा है कि एम्स उनके लोकसभा क्षेत्र मे खोला जाये अन्यथा केंद्रीय स्वास्थ्यमंत्री श्री गुलाम नबी आज़ाद इसके लिए इस तरह अड़े नहीं रहते। मैडम की इच्छा ही यदि एम्स स्थापना के मापदंड हैं तो कोई क्या कर सकता है क्योंकि उनकी पार्टी की केन्द्र में सरकार है और यह उसी सरकार की प्रोजेक्ट है। अन्यथा की स्थिति में एम्स हेतु स्थल निश्चित करने से पूर्व यह ध्यान रखना आवश्यक है कि प्रदेश सरकार द्वारा एम्स के लिए चिन्हित स्थल बन्नामऊ से संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान, लखनऊ मात्र 60 कि॰ मी॰ पर स्थित है। ऐसी स्थिति में अगल-बगल में एक ही स्तर के दो संस्थान खोलने की कोई औचित्य नहीं बनता। अब यदि प्रदेश के अन्य क्षेत्रों पर दृष्टिपात करें तो ज्ञात होता है कि सैफई में पहले से ही एम्स जैसा “ग्रामीण आयुर्विज्ञान संस्थान” (रिम) स्थापित है जिससे आगरा सहित आस-पास के अन्य जिले आछादित हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मेरठ सहित अन्य जिले दिल्ली के अति निकट हैं। एसपीजीआई के निकट मध्य उ॰ प्र॰ के बहुत सारे जिले स्थित हैं। आयुर्विज्ञान संस्थान, बी॰ एच॰ यू॰, वाराणसी से भी कई निकटवर्ती जनपद लाभान्वित होते हैं। शेष बचा पूर्वाञ्चल का गोरखपुर क्षेत्र जिसके आस-पास जनपदों की आबादी प्रदेश में सबसे घनी है। इन जिलों में जापानी मस्तिष्क ज्वार ने महामारी का रूप ले लिया। प्रति वर्ष हजारों रोगियों की मृत्यु होती है। ऐसी स्थिति में गोरखपुर एक तार्किक स्थल हो सकता है जिससे पूर्वी उ॰ प्र॰ के अतिरिक्त पश्चिमी बिहार सहित नेपाल के लगभग 7 करोड़ रोगी लाभान्वित होंगे। रही बात बुंदेलखंड की तो इसमे कोई संदेह नहीं कि रायबरेली की तुलना में यह एक उपयुक्त क्षेत्र है जहां एम्स स्थापित किया जा सकता है।
उत्तर प्रदेश सरकार ने प्रदेश के अन्य किसी क्षेत्र में एम्स स्थापना हेतु विचार करने के बारे में सोचा ही नहीं। इसमे कोई दो राय नहीं कि कई ऐसे तर्कपूर्ण कारक हैं जिनके आधार पर रायबरेली के स्थान अन्य क्षेत्र को प्राथमिकता मिलनी चाहिए लेकिन प्रदेश सरकार को इसमे लेशमात्र रुचि नहीं है। ऐसा हो भी क्यों नहीं क्योंकि सैफई में एम्स जैसा रिम पहले से ही स्थापित है। सच मानकर चलिये यदि श्री मुलायम सिंह यादव के गाँव सैफई मे एम्स जैसा विशेज्ञतापूर्ण चिकित्सा संस्थान न होता तो यह वहीं खुलता। जिस तरह कांग्रेस की केंद्र सरकार रायबरेली एवं अमेठी के विकास को ही अपना प्रथम दायित्व समझती है ठीक उसी तरह से सपा सैफई के विकास को। यह निश्चित रूप से वोटरों को लुभाने का प्रयास है अन्यथा 60 के॰ मी॰ की दूरी पर एक जैसे क्यों दो संस्थान होने चाहिए। यह सबको पता है कि रायबरेली, अमेठी, सैफई, सहारनपुर आदि का विकास ही देश-प्रदेश का विकास नहीं हो सकता फिर जनता के टैक्स का हजारों करोड़ रुपया इन्ही स्थानों एवं मूर्तियों पर खर्च करना स्पष्ट रूप से खुला राजनैतिक एवं आर्थिक भ्रष्टाचार है। देश के संसाधनों का सभी क्षेत्रों के समान रूप से विकास में उपयोग होना चाहिए लेकिन राजनेताओं के भ्रष्ट आचरण के कारण ऐसा ऐसा संभव नहीं हो पा रहा है। परिणामतः विकास के संदर्भ में क्षेत्रीय असंतुलन के कारण देश में अराजकता का माहौल पैदा हो रहा है। सत्ता में बने रहने के लिए ये पार्टियां किसी भी स्तर तक गिरने को तैयार हैं भले ही देश और समाज की कितनी भी आपूरणीय क्षति हो। ऐसी स्थिति में किसको प्रदेश की जनता के स्वास्थ्य की चिंता है। प्रदेश में एम्स बने न बने और यदि बने तो केवल श्रीमती सोनिया गांधी के लोकसभा क्षेत्र रायबरेली में, लेकिन ऐसा क्यों? इसका जबाब तो केंद्र व राज्य सरकारें ही दे सकती हैं लेकिन प्रदेश की जनता द्वारा इस बेईमानीपूर्ण कृत्य का शांतिपूर्ण प्रबल विरोध होना चाहिए जो कि उसके हित में है।
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